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16:34, 16 सितम्बर 2016 {{KKGlobal}}
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| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप'
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<poem>
अज़ब लिख रहे हैं गज़ब लिख रहे हैं
हमारे मोहल्ले में , सब लिख रहे हैं I
अभी बे-अदब की ही तूती है ज्यादा
अमाँ ! आप बैठे अदब लिख रहे हैं ?
ये बलवा सियासत की शह पे हुआ है
वे मछली फँसाकर सबब लिख रहे हैं I
पड़ोसन की ऐसी कढ़ाही है साहिब !
लगती गमकने है , जब लिख रहे हैं I
इधर से , उधर से , यहाँ से , वहाँ से
मिले 'दीप' धक्के तो अब लिख रहे हैं I
</poem>