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अज़ब लिख रहे हैं गज़ब लिख रहे हैं / दीपक शर्मा 'दीप'
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अज़ब लिख रहे हैं गज़ब लिख रहे हैं
हमारे मोहल्ले में, सब लिख रहे हैं
अभी बे-अदब की ही तूती है ज्यादा
अमाँ! आप बैठे अदब लिख रहे हैं
ये बलवा सियासत की शह पे हुआ है
वे मछली फँसाकर सबब लिख रहे हैं
पड़ोसन की ऐसी कढ़ाही है साहिब!
लगती गमकने है, जब लिख रहे हैं
इधर से, उधर से, यहाँ से, वहाँ से
मिले 'दीप' धक्के तो अब लिख रहे हैं