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| रचनाकार= दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक=|संग्रह=}}
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<poem>
हल्का-हल्का-गहरा-गहरा-गाढ़ा-गाढ़ा उतरा है
चाँद हथेली पर उतरा तो , पारा-पारा उतरा है I
सोच रहे थे आखिर ऐसा नूर बला का किसका है
गाँव-गाँव में ढोल बजे हैं आज दुलारा उतरा है I
नई-नवेली दुल्हन आई बड़कू के घर , देखन को
भीड़ देखकर लगता है कि टोला सारा उतरा है I