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जो निहाँ रहता था / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’
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09:26, 17 नवम्बर 2016
जब से सूरज, चाँद-तारे जीस्त के हिस्से हुए,
एक मुफ़लिस में कहन शाहेजहाँ रहने लगा!
दीदएतर
दीद-ए-तर
से वुजूदे ज़िन्दगी हासिल हुआ,
मैं जवानी से कहीं ज्यादा जवां रहने लगा!
Sharda suman
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