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भावशवल : (विरहिणीका मनको तरङ्ग) / श्यामजीप्रसाद शर्मा अर्याल
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04:58, 5 जनवरी 2017
बाचूँ हाय म के गरी ! अब सखी ! लीये सबैले रिस ।।१५।।
लागे फर्कन स्वामि हेर सबका संझेर
का
कान्ताकन
मेरै मात्र नफर्कने अझ पनी कस्तो कडा त्यो मन ।
बाटो हेर्दछु तैपनी म त सदा आये कि प्यारा भनी
Sirjanbindu
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