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10:40, 9 जनवरी 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
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<poem>
पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे
हर कदम पर भेड़िये पहले न थे।
अब के बच्चे भी तमंचे रख रहे
इतने सस्ते असलहे पहले न थे।
जल को भी दरपन बना लेते थे लोग
इतने गँदले आइने पहले न थे।
देश में पहले भी नेता हो चुके
यूँ लुटेरे दोगले पहले न थे।
दोस्तो कितना पतन होगा अभी
इस क़दर पुल टूटते पहले न थे।
माँगते थे पुत्र, पैसे बाप से
हक़ जताकर छीनते पहले न थे।
जब से छूटी नौकरी यह हाल है
यूँ सनम तुम रूठते पहले न थे।
</poem>
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