भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे / डी.एम.मिश्र
Kavita Kosh से
पुरख़तर यूँ रास्ते पहले न थे
हर कदम पर भेड़िये पहले न थे।
अब के बच्चे भी तमंचे रख रहे
इतने सस्ते असलहे पहले न थे।
जल को भी दरपन बना लेते थे लोग
इतने गँदले आइने पहले न थे।
देश में पहले भी नेता हो चुके
यूँ लुटेरे दोगले पहले न थे।
दोस्तो कितना पतन होगा अभी
इस क़दर पुल टूटते पहले न थे।
माँगते थे पुत्र, पैसे बाप से
हक़ जताकर छीनते पहले न थे।
जब से छूटी नौकरी यह हाल है
यूँ सनम तुम रूठते पहले न थे।