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<poem>
कभी बाढ़ की चोट
कभी सूखे की मार
कभी पाला -पाथर की वृष्टि
कभी रोगों की भरमार।

बँटाई पर खेत
लोगों का तगादा
सिंचाई और पोत
जिलेदार का
जेल की हवा खिलाने का वादा।

डेहरी का सफाया
पड़ोसी का इन्कार
बनिये का बकाया
बन्द सारे द्वार।

चूता छप्पर
दरकी दीवार
ठिठुरे मवेशी
सहमा परि‍वार।
भाई की पढाई बीमार मॉ की दवाई जवान बहन की सगाई फटे कपडों में लुगाई।
अ‍ँटकी मजूरी कर्ज में जि‍न्दगी
तबाही ही तबाही
बरबादी ही बरबादी
यह है हमारी चौहद्दी !
</poem>
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