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वो मानबहादुर होता है / डी. एम. मिश्र
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10:43, 11 जनवरी 2017
अंबर -सा विस्तार दिखे तो सागर की गहराई होती
नहीं है कोई धटाटोप पर कण - कण की बातें हैं उसमें
त्रै्रैलोक्य
त्रैलोक्य
हो भले नहीं पर जन - जन की बातें है उसमें।
फूलों की ही बात नहीं है काँटों से भी प्यार वहाँ है
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