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घनाक्षरी / मिलन मलरिहा

1 byte added, 10:36, 18 जनवरी 2017
नष्ट झिनकरा संगी, रुखराई वन बन
::::जीवजन्तु कलपत, सुनले सुन ले पुकार रे।
प्राण इही जान इही, सुद्ध हवा देत इही
::::झिन काट रुखराई, अउ आमाडार रे।
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