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बीच के लोग / शील

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| रचनाकार= शील |अनुवादक=|संग्रह=}}{{KKCatKavita}}
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खाते-पीते, दहशत जीते
वर्ग-धर्म पटकनी लगाता,
माहुर माते बीच के लोग।
 
घर में घर की तंगी-मंगी,
भ्रम में भटके बीच के लोग।
लोभ-लाभ की माया लादे,
झटके खाते बीच के लोग।
 
घना समस्याओं का जंगल,
कीर्तन गाते बीच के लोग।
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