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{{KKRachna
|रचनाकार=योगेंद्र कृष्णा
|संग्रह=कविता के विरुद्ध / योगेंद्र कृष्णा
}}
<poem>
सच को मैंने अबतक
गलत सिरे से पकड़ रखा था

इसलिए
फिसल गया एक दिन
मेरे हाथ से

और तभी मैंने जाना
हर सच का
एक ओर होता है
और एक छोर भी…