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हरिद्वार की घाटी / शिवबहादुर सिंह भदौरिया
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07:54, 17 फ़रवरी 2017
आ गयी
यायावर के काम।
अर्थ टूटे नीर का तालाब
अब
तुमसे कब मिलें।
बातें सुषुप्ति की
याद नहीं
जाग्रति की क्या कहें
सपनों तक फैल गईं
दफ्तर की फाइलें।
संवेदन-आलपीन में
नत्थी हैं:
सन्नाटे की सुइयाँ
चुभोती दिशाएँ,
पत्थरों की मार से
अर्थ-टूटे नीर का
तालाब,
कोहरा पहने हुए
धुँधले सबेरे का
जवाब
रोशनी के कँवल-दल
कैसे खिलें।
</poem>
Lalit Kumar
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