एक
दिया है-पर्वतीय घाटी
हरिद्वार की,
वर्त्तिका: इन्द्रधनुष
क्या कहने
सप्तरंगी उजियार की;
आज सँझवाती किसी की
छोड़कर गुण-धाम,
आ गयी
यायावर के काम।
एक
दिया है-पर्वतीय घाटी
हरिद्वार की,
वर्त्तिका: इन्द्रधनुष
क्या कहने
सप्तरंगी उजियार की;
आज सँझवाती किसी की
छोड़कर गुण-धाम,
आ गयी
यायावर के काम।