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और यथार्थ भी / कुमार मुकुल

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार मुकुल|अनुवादक=|संग्रह=एक उर्सुला होती है}}{{KKCatKavita}}<poem> और यथार्थ भी
एक दिन
दुररूस्वप्न हो जाता है
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