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भान : एक / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>

देखो तो सई
टाबरां री आंख्यां रो च्यानणौ
कित्ती हूंस व्है
भान चुगण री
ताकती रैवे आंख्यां
भान नै
खथावळ सूं खथावळ
भान भैळी करण री
सांची
गांव जींवतो देख्यो
ब्याव में।

</poem>
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