भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भान : एक / गौरीशंकर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


देखो तो सई
टाबरां री आंख्यां रो च्यानणौ
कित्ती हूंस व्है
भान चुगण री
ताकती रैवे आंख्यां
भान नै
खथावळ सूं खथावळ
भान भैळी करण री
सांची
गांव जींवतो देख्यो
ब्याव में।