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भान : : तीन / गौरीशंकर

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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
टाबरां री आंख्यां में
देख्यो
बसतो गांव
खड़ी ही टाबरां री टोळ
उड़ीकै ही
भान फैकणीयै
हाथां री करामात नै।
</poem>
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