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|रचनाकार=राजूराम बिजारणियां
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|संग्रह=थार-सप्तक-2 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
पड़ाल री ओट
खड़ी रेत.!

हेत रा फूटता
अलेखूं झरणां

लुक-लुक जोवै
टेढी निजरां
जीव री जड़ नै।

मन में भर उडार
चावै जावणो
नैण मिलावणो।

भतूळियो-
तेज रै परवाण
नीं बस में हरेक रै
झेलणो उण री झळ नै।

स्यात-
इण सारू रेत
दबावती हेत
चावै नीं उडणो
फटकारै सूं।

रेत री नीत
उडणो नीं
दुड़णो नीं

होय अेक
साथै साथै मुड़णो है.!

</poem>
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