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16:16, 17 जून 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आनंद कुमार द्विवेदी
|अनुवादक=
|संग्रह=फुर्सत में आज / आनंद कुमार द्विवेदी
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<poem>
क्या क्या सपने दिखलाते हैं ये सपने,
एकदम पीछे पड़ जाते हैं, ये सपने !
मैंने हर खिड़की दरवाजा बंद किया था,
जाने किस रस्ते आते हैं, ये सपने !
इनको मालूम है मैं इनसे डरता हूँ,
मुझे डराने आ जाते हैं, ये सपने !
इनको अक्सर मैं समझाकर चुप करता हूँ,
मुझको अक्सर भड़काते हैं, ये सपने !
जब-जब इनके डर से नींद नहीं आती है,
तब-तब दिन में आ जाते हैं, ये सपने !
वैसे तो ये अक्सर, झूठे ही होते हैं,
कभी-कभी सच दिखलाते हैं, ये सपने !
जब-जब मेरी हार, मुझे तडपाती है ,
तब-तब आकर समझाते हैं, ये सपने !
ये ‘आनंद’ गया तो , लौटे न लौटे ,
इसी बात से घबराते हैं, ये सपने !
</poem>