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08:46, 27 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सिया चौधरी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-4 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
आ
सरासर गळती आपणीं
कै लोग ढूंढै खोट
गळती आपणीं
कै लोग बणावै बातां
जद देखै हेत
आपणैं नैणां में।
गळती है आपणीं
कै एक दूजै नै
देख-देख‘र जीवां
आ ई तो है
असली गळती आपणीं
कै मिलग्या
मन सूं मन
अर देख लिया
साथै रा सुपनां।
</poem>
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