Changes

अरज / जितेन्द्र सोनी

1,805 bytes added, 16:25, 27 जून 2017
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र सोनी |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=जितेन्द्र सोनी
|अनुवादक=
|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
{{KKCatKavita}}
{{KKCatRajasthaniRachna}}
<poem>
रूई सिरखा बादळां नैं
जका बरसै है अठै हमेस
देखूं हूं जद भाखपाटी-सी
भाखरां री गोद मांय
नचीता सूता
तद आपोआप
भटक जावै है म्हारो ध्यान।

थार में
जठै पथरायगी आंख्यां
बिरखा सारू

हाथ जोड़ कैवूं वांनैं
बरसो अठै हरख सूं
पण अेकर मिल तो जाओ
म्हारी थार री माटी सूं।

इणसूं पैलां कै
थार रो अकाळ गिट जावै वांनै
बरसो अेकर
फूटै नवी कूंपळां
सूखता ठूंठां मांय
वापर जावै ज्यान
बैसकै पड़्या डांगरां मांय
देखो,
अठै जद थे बरसो बार-बार
म्हे धाप जावां
घणी बार
इण वास्तै अेकर बरस'र देखो तो
थार री तपती जमीं माथै
बठै हुवैली आपरी घणी मनवार
हरख रै आंसुवां सूं
जका थारै पाणी सूं रळमिळ
हो जावैला अेकाकार
अेकर बठै बरसो तो सरी।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
8,152
edits