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16:36, 27 जून 2017 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=धनपत स्वामी
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|संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’
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<poem>
देही रै माळियै
बेजां भर्योड़ा है
भगवानां रा सिरज्या
गोळा-बारूद-भाला-बरछा
बैम में है अब
आपणां कारनामां
ओळपंचोळा-आडा-टेडा
जाबक ऊतपटांग
लाम्बा-लाम्बा तीबा
आवळ-कावळ टांका मार-मार
सांध राख्या है लीरा
जिण ढक राखी है
आपणी मैली काया।
हेली आपणीं
बजावै अणमणीं डï्यूटी
लगोलग हरमेस
जणां ई तो गुड़ै
ओ नासवान डील रो गाडो
बैंम पण रैवै हरमेस
है किण माथै ठाह नीं
म्हैं हूं, पण हूं कै नीं
ईयां लागतो रैवै हरमेस।
</poem>
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