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{{KKRachna
|रचनाकार=ओम पुरोहित ‘कागद’
|अनुवादक=
|संग्रह=भोत अंधारो है / ओम पुरोहित ‘कागद’
}}
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<poem>
ओळ्यूं कोई
सबक नीं है
किणीं पोथी रा
काळा आखर ज्यूं
जका बांच-बांच
ऊभी करल्यूं पड़तख
अदीठ होंवती नै
दीठ रै साम्हीं!

ओळ्यूं तो
रगत है
रगां में बैंवतो
जको मतै ई ढूकै
भेजै रै पड़
अर कोरै
थांरो उणियारो!
</poem>
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