भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ओळ्यूं : पांच / ओम पुरोहित ‘कागद’
Kavita Kosh से
ओळ्यूं कोई
सबक नीं है
किणीं पोथी रा
काळा आखर ज्यूं
जका बांच-बांच
ऊभी करल्यूं पड़तख
अदीठ होंवती नै
दीठ रै साम्हीं!
ओळ्यूं तो
रगत है
रगां में बैंवतो
जको मतै ई ढूकै
भेजै रै पड़
अर कोरै
थांरो उणियारो!