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{{KKRachna
|रचनाकार= मधु आचार्य 'आशावादी'
|संग्रह=अमर उडीक / मधु आचार्य 'आशावादी'
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<poem>
आवो,
आपां आपसरी में ई बातां करां
थूं म्हनै कीं झूठ सुणा
म्हैं थनैं कीं झूठी बातां कैवूं
दोनूं अेक -दूजैं रो
मन बिलमावां।
गळै मिलां
हाथ मिलावां
जोर-जोर सूं हंसी सुणावां
फेरूं न्यारा-न्यारा हुय जावां
न्यारा हुवतां ई
अेक-दूजै नै जाय ‘र
खरी-खोटी सुणावां
आ इज तो है आज
मजबूत रिस्तै री पिछाण
बापड़ी दुनिया
दोनूं रै भेळप सूं रैवै
अणजाण।
</poem>
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