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09:48, 8 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=रोशनी का कारवाँ / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
रूप बदलकर एक टाँग पर खड़ा मगर है।
बगुले की तालाब पे लेकिन बुरी नज़र है।
मुँह में अपने आप निवाला आ जाता है,
बड़ी सुरक्षित कुर्सी पर बैठा अजगर है।
अंधे राजा के सब पहरेदार सो गये,
प्रजा सजग है धोख में दरबार मगर है।
गाँव छज्ञेड़कर अपना मैं यह कहाँ आ गया,
पुठपाथों पर जगह नहीं सम्पन्न शहर है।
मँहगाई की मार झेलता आम आदमी,
बड़े लोग तो खुश हैं उन पर कहाँ असर है।
</poem>
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