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संस्कृति / ॠतुप्रिया

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|संग्रह=सपनां संजोवती हीरां / ॠतुप्रिया
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<poem>
आपां पढां
अर
पढे बगां
स्यात कीं लोग
इणनै विकास कैवै
पण म्‍हूं सोचूं
कै आपणी संस्कृति
लुंज-पुंज होवण लागरी है

संस्कृति नीं
तद आपांईं नीं

आपां
चायै कीं बणनौ चावां
पण सैं’ सूं पैली
आपणी संस्कृति बचावां।

</poem>
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