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10:29, 8 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ॠतुप्रिया
|अनुवादक=
|संग्रह=सपनां संजोवती हीरां / ॠतुप्रिया
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<poem>
आपां पढां
अर
पढे बगां
स्यात कीं लोग
इणनै विकास कैवै
पण म्हूं सोचूं
कै आपणी संस्कृति
लुंज-पुंज होवण लागरी है
संस्कृति नीं
तद आपांईं नीं
आपां
चायै कीं बणनौ चावां
पण सैं’ सूं पैली
आपणी संस्कृति बचावां।
</poem>
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