भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संस्कृति / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
आपां पढां
अर
पढे बगां
स्यात कीं लोग
इणनै विकास कैवै
पण म्हूं सोचूं
कै आपणी संस्कृति
लुंज-पुंज होवण लागरी है
संस्कृति नीं
तद आपांईं नीं
आपां
चायै कीं बणनौ चावां
पण सैं’ सूं पैली
आपणी संस्कृति बचावां।