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11:42, 9 जुलाई 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा
|अनुवादक=
|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
}}
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<poem>
फसलां भेळी
मुळकै नहर
बायरै मारफत
बा करै बंतळ
ओळखै-
जमानै री आस सूं
झूमतै जग-जीवण रो हरख।
पाणी में पळकै
जूण रा रंग।
</poem>
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