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नहर री मुळक / मदन गोपाल लढ़ा
Kavita Kosh से
फसलां भेळी
मुळकै नहर
बायरै मारफत
बा करै बंतळ
ओळखै-
जमानै री आस सूं
झूमतै जग-जीवण रो हरख।
पाणी में पळकै
जूण रा रंग।