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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
इण सहर री नींद घट है
मंझ रात नैं
कदी बतळा लेवो
झट बोल जासी
जाणै हणै ई सूत्यो हो।

नींद घट रो मतळब ओ कोनी
कै सपनां ई कोनी
जागती आंख्यां सूं देखै-
ऊजळै भविस रा सतरंगी सपनां
जिलो बणणै रा
आगै बधणै रा
अेज्युकेशन हब बणणै सारू तो
ओ चाल ई पड़्यो है।

अेक जातरी है ओ सहर
चालणो है जुगां-जुगां।
</poem>
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