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सौरम / मदन गोपाल लढ़ा

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|संग्रह=चीकणा दिन / मदन गोपाल लढ़ा
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<poem>
रगत रै रिस्तै सूं
कमती कोनी हुवै
आतमा रो रिस्तो।

धरम,भासा अर भूगोल रै
भेद सूं
भोत ऊंचो हुवै
आतमा रो आंगणो
जठै कोई भींत
कोनी रोक सकै
भावां री सौरम।

चार सौ कोस रै आंतरै नंै
डाकÓर जद थूं
म्हारै हिवड़ै रोप्यो
बाप-बेटी रै नेह रो बिरवो
तद सांचाणी
उणरी सौरम सूं
सैंचन्नण हुयग्यो
म्हारो जग-जीवण।
</poem>
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