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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=उजाले का सफर / डी. एम. मिश्र
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<poem>
दुनिया नहीं रुकी है बेशक़ किसी के बाद।
मेरा हुआ ये हाल है लेकिन उसी के बाद।

जब वक्त हाथ में था तो थामा न तेरा हाथ,
अब प्यार आ रहा है मगर बेबसी के बाद।

मैंने विदा किया था तुझे ग़ैर का तरह,
कैसे नज़र मिलाउँगा कल वापसी के बाद।

आँगन की धूप जा रही है धीरे-धीरे दोस्त,
अब तो दिखेंगे फूल भी काले इसी के बाद।

मुझ पर लगा रहे थे जो इल्जा़म कल तलक,
रोने लगे हैं वो भी मेरी खु़दकुशी के बाद।
</poem>
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