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दुनिया नहीं रुकी है बेशक़ किसी के बाद / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
दुनिया नहीं रुकी है बेशक़ किसी के बाद
मेरा हुआ ये हाल है लेकिन उसी के बाद।
जब वक्त हाथ में था तो थामा न तेरा हाथ
अब प्यार आ रहा है मगर बेबसी के बाद।
मैंने विदा किया था तुझे ग़ैर का तरह
कैसे नज़र मिलाउँगा कल वापसी के बाद।
आँगन की धूप जा रही है धीरे-धीरे दोस्त
अब तो दिखेंगे फूल भी काले इसी के बाद।
मुझ पर लगा रहे थे जो इल्जा़म कल तलक
रोने लगे हैं वो भी मेरी खु़दकुशी के बाद।