हलचल है कोई तन मन मे,
खो कर जीती हूँ चैन सखी!
क्यों इतना ....................
जब चाहत की लहरें उठती ,
सारा दिन गुजरे गीतों सँग ,
तारों सँग गुज़रे रैन सखी!
क्यों इतना .....................
करती यदि चाहत की चाहत,
तस्वीर बसाकर इस दिल में,
आबाद करूँ ये नैन सखी!
क्यों इतना .....................
</poem>