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जिंदगी थोड़ी है बंधन बहुत ज्यादा / डी. एम. मिश्र
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10:03, 24 अगस्त 2017
और अब मिलता है बेमन बहुत ज़्यादा।
हर किसी
का
को
एक ही चिंता सताती
राम कम हैं और रावन बहुत ज़्यादा।
</poem>
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