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जिंदगी थोड़ी है बंधन बहुत ज्यादा / डी. एम. मिश्र

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जिंदगी थोड़ी है बंधन बहुत ज्यादा
दोस्त कम हैं और दुश्मन बहुत ज़्यादा।

चार दिन पहले उसी से दोस्ती थी
आजकल उससे है अनबन बहुत ज़्यादा।

कल तलक तस्वीर लेकर घूमता था
और अब मिलता है बेमन बहुत ज़्यादा।

हर किसी को एक ही चिंता सताती
राम कम हैं और रावन बहुत ज़्यादा।