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05:36, 27 अगस्त 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना कुमारी
|अनुवादक=
|संग्रह=पत्थरों के देश में देवता नहीं होते / अर्चना कुमारी
}}
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<poem>
विप्रलब्ध नायक
सांसों को हुक्म मानकर
पदचापों की आहटों के
आरोह अवरोह में जीता है
जा चुकी नायिका का
उसमें बने रहना ही
प्रेम होता है शायद।
</poem>
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