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इज़्ज़तपुरम्-3 / डी. एम. मिश्र

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<poem>
अनेक छिद्रयुक्त
आसमान जैसी
औंधी
अँटकी
कमलिया की
मड़ई

सिर पर
घहराती
बारिश खड़ी

एक हाथ से
यह पहाड़ भी
उठाना उसे

वरना
करमू
ठंड और बारिश में
और भी
कराहेगा
खाँसेगा
हालेगा फेफड़ा
तो घर पूरा
उठा लेगा सिर पर
भूख के जाल में
जन्मे
दो काफी थे
छोटई
भूल का
नतीजा है

बड़ी औलाद का
कच्चा कंधा भी
तगड़ा दिखायी दे

माँ
उत्साह से बखाने
गुलाबो
बेटी नहीं
बेटा है
दाहिना हाथ है
</poem>
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