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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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<poem>
टिकोरे
पड़ गये
और
बढ़ गये
जंगली
बच्चों के उत्पात

दरिन्दगी और
बहशीपन से
अनभिज्ञ
गुलाबो
कब नौ से
तेरह की हो गयी
पता न चला

दृष्टियों की तपन
और आँच के
आभास में
शील
संकोच
सीमाओं में
सिकुड़े
छोटी बनियाइन में
समा नहीं रहे
</poem>
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