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इज़्ज़तपुरम्-11 / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
टिकोरे
पड़ गये
और
बढ़ गये
जंगली
बच्चों के उत्पात
दरिन्दगी और
बहशीपन से
अनभिज्ञ
गुलाबो
कब नौ से
तेरह की हो गयी
पता न चला
दृष्टियों की तपन
और आँच के
आभास में
शील
संकोच
सीमाओं में
सिकुड़े
छोटी बनियाइन में
समा नहीं रहे