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{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
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<poem>
मगर
सभ्यता का
तकाज़ा
आज भी वही है

उम्र के साथ -साथ
पाबन्दियाँ बढ़ें
देर रात से
पहले वह
घर लौट आये

पॉव
खाल - ऊँच
देखकर रक्खे
क्योंकि वह
एक लड़की है
</poem>
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