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|रचनाकार=रमाकांत द्विवेदी 'रमता'
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|संग्रह=हामार सुनीं / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'
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साथी! ऊ दिन परल इआद, नयन भरि आइल ए साथी!
 गरजे-तड़के-चमके-बरसे घटा भयावन कारी,आपन हाथ आपु ना सूझे, अइसन रात अन्हारी , चारों ओर भइल पनजंजलपनजँजल, ऊ भादो-भदवारी,डेगे-डेग गोड़ बिछिलाइल, फनली कठिन कियारी,
केहि आसा बन-बन फिरलीं छिछियाइल ए साथी!
 हाथे कड़ी, पाँव में बेड़ी, डाँड़े रसी बन्हाइल,बिना कसूर मूँज के अइसन लाठिन देह थुराइल,सूपो-चालन कुरुक कराके जुरमाना असुलाइल,बड़ा धरछने आइल, बाकी ऊ सुराज ना आइल,
जवना खातिर तेरहो करम पुराइल ए साथी!
 भूखे पेट बिसूरे लइका-समुझे ना समुझावे,गाँथि लुगरिया रनिया झुरवे, लाजो देखि लजावे,बिनुकिवाँड़ घर कुकुर पइसे-ले छुछहँड़ ढिमिलावे,रात-रात भर सोच फिकिर में आँखी नीन न आवे,
ई दुख सहल न जाय-कि मन अबियाइल ए साथी!
 कूर-सँघाती राज हड़पले, भरि मुँह ना बतिआवसु,हमरे बल से कुरुसी तूरसु, हमके आँखि दुखवसु,दिन-दिन एने बढ़े मासिबत, ओने मउज उड़ावसु,‘पाथर बोझल नाव, भँवर में , दइवे पार लगावसु‘लगावसु,‘सजगे इन्हिको अंतकाल निगिचाइल अन्त काल नगिचाइल ए साथी! 
साथी ऊ परल इयाद, नयन भरि आइल ए साथी!
 
'''रचनाकाल : 08.06.1953'''
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