भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेयालीस के साथी / रमाकांत द्विवेदी 'रमता'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

साथी! ऊ दिन परल इआद, नयन भरि आइल ए साथी!

गरजे-तड़के-चमके-बरसे घटा भयावन कारी,
आपन हाथ आपु ना सूझे, अइसन रात अन्हारी,
चारों ओर भइल पनजँजल, ऊ भादो-भदवारी,
डेगे-डेग गोड़ बिछिलाइल, फनली कठिन कियारी,
केहि आसा बन-बन फिरलीं छिछियाइल ए साथी!

हाथे कड़ी, पाँव में बेड़ी, डाँड़े रसी बन्हाइल,
बिना कसूर मूँज के अइसन लाठिन देह थुराइल,
सूपो-चालन कुरुक कराके जुरमाना असुलाइल,
बड़ा धरछने आइल, बाकी ऊ सुराज ना आइल,
जवना खातिर तेरहो करम पुराइल ए साथी!

भूखे पेट बिसूरे लइका-समुझे ना समुझावे,
गाँथि लुगरिया रनिया झुरवे, लाजो देखि लजावे,
बिनुकिवाँड़ घर कुकुर पइसे-ले छुछहँड़ ढिमिलावे,
रात-रात भर सोच फिकिर में आँखी नीन न आवे,
ई दुख सहल न जाय-कि मन अबियाइल ए साथी!

कूर-सँघाती राज हड़पले, भरि मुँह ना बतिआवसु,
हमरे बल से कुरुसी तूरसु, हमके आँखि दुखवसु,
दिन-दिन एने बढ़े मासिबत, ओने मउज उड़ावसु,
‘पाथर बोझल नाव, भँवर में, दइवे पार लगावसु,‘
सजगे इन्हिको अन्त काल नगिचाइल ए साथी!

साथी ऊ परल इयाद, नयन भरि आइल ए साथी!

रचनाकाल : 08.06.1953