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11:30, 18 सितम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=डी. एम. मिश्र
|संग्रह=इज़्ज़तपुरम् / डी. एम. मिश्र
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
पैसों के
जोर पर
अनाप-शनाप
बढ़ती
पटरियों के
इस युग में
सोचना फिजूल है
कि गाड़ी पटरी पर आयेगी
और लोग अपना बोझ
उठायेंगे खुद
सोचिये-
जरूरी है
कुली लोग हों
या लोग हों कुली
पर, इन्सानी बुद्धि का
दावा यही है
कि बुद्धि का हथियार
वो चला लेता
कैसे है ?
अपना बोझ डालकर
दूसरे के कंधे पर
आगे-आगे चलता है
झुलाता हुआ खाली हाथ
</poem>
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