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बॉल पेन / जया पाठक श्रीनिवासन

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<poem>
कितना आसान था न
कोरे पन्नों पर फाउंटेन पेन से लिखे
झक सफ़ेद सच को
मार देना
बस एक दवात काली स्याही ही तो
उड़ेलनी होती थी
लेकिन अब
बॉल पेन से लिखा सच
अगले कई सफ़ों तक
छोड़ जाता है अपने निशान
इसे मिटाने के लिए
जुगाड़ना पड़ता है
जीवन भर का ख़ौफ़
बहाना पड़ता है
पूरी देह भर का खून
</poem>
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