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<poem>
अलौकिक थी
... पहली छुअन
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य मे
अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
... अनुबंध मात्र रह गये
अतृप्तता के अरण्य से
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