भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अलौकिक थी पहली छुअन / सुरेश चंद्रा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अलौकिक थी
पहली छुअन
निष्पाप, निश्छल
आद्र दृष्टि के साक्ष्य में

अंतिम चुंबन तक
हम देह पर देहिल गंध
अनुबंध मात्र रह गये

अतृप्तता के अरण्य से
उकताहट की ऊभ-चूभ में
विलुप्त होते हुये

एक अंतहीन असमंजस
अनंत आपाधापी लिये
हम दोनों प्रेम में
प्रेम के अपराधी हो चुके थे.