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जीवन, मरणोत्तर एक क्रियाशील शब्द है / सुरेश चंद्रा
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07:52, 20 अक्टूबर 2017
रोटियाँ जला ली तुमने
क्या सोचती रहती हो
?
?क्या खदबदाता है अंदर
?
?
अब, जब-जब धधकना
अश्रुओं की आंच मद्धम कर लेना
जब-जब बिखरना
संवारना
सँवारना
, मन की बिगड़ी रंगोली
घर की सूनी देहरी पर
जलना तुम, दीये की बोली
Anupama Pathak
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